विश्वास -------------
----------------- विश्वास --------------
विश्वास किया जो गैरों पर ,पहले वो बाला चौंक उठी,
किसने बेचा होगा उसको वह सोच समझ फ़ुफ़कार उठी।
फ़िर हाथ बढ़ाया आगे को , तलवार खींच ली बाला ने,
देखूं कौन है आता मुझको साथ अपने ले जाने को।
कुछ ही पल गुज़रे होंगे तब एक अधेड़ उम्र इन्सां आया,
चलो ज़ान तुम मेरी हो,इतना भी नहीं वह कह पाया।
तलवार बाला की झनझना उठी,बोली तुम आगे मत बढ़ना,
मैं शीश काट दूंगी तेरा, ख़रीदार तुम आगे मत बढ़ना।
वो अधेड़ हो गया वापस ज़िस्म था उसका कांप रहा,
भूल गया साथ ले कर जाना, चेहरे पर पश्चात्ताप रहा।
सोचा उसने अब जीवन में ये घृणित कार्य न कर पाऊंगा,
क्षणिक सुख को मैं अपने क्यों औरों को नर्क दिखाऊंगा।
सब बालाओं को निज सम्मान हेतु अब खड्ग उठाना ही होगा,
दुष्कर्म प्रवृत इन लोगों का अब शीश काटना ही होगा।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़